सरकारी स्कूलों में शाला प्रबंधन समिति की जगह
समग्र शिक्षा नाम से खाते खुलवा रहा शासन
आरएसके (राज्य शिक्षा केंद्र) ने इंदौर
सहित प्रदेशभर के एक लाख से ज्यादा सरकारी स्कूलों के एसएमसी (शाला
प्रबंधन समिति) के खाते अचानक
शून्य कर दिए हैं। यानी, स्कूल प्रबंधन अब चॉक, ब्लैक बोर्ड, रजिस्टर, बल्ब
जैसी छोटी-मोटी चीजें भी नहीं खरीद पाएंगे, जबकि हर स्कूल के एसएमसी
खाते में औसत दो लाख रुपए थे। यानी, आरएसके ने एक झटके में सरकारी
स्कूलों के करीब 20 अरब रुपए झटक लिए। अकेले इंदौर के 1700 से अधिक
स्कूलों के 35 करोड़ रुपए डूब गए। ऐसा इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि
एसएमसी की जगह अब समग्र शिक्षा के
नाम से खाते खोले जाएंगे। इन खातों से लेनदेन कब और किस प्रारूप में होगा?
न खातों में कब और कितनी राशि नहीं आएगी? नए खाते अस्तित्व में आने
तक स्कूल अपने सामान्य खर्च कैसे चलाएंगे? जैसे कई सवाल आरएसके के
एकतरफा फैसले से खड़े हो रहे हैं। प्रदेश के एक लाख सरकारी स्कूलों में
करीब 90 लाख विद्यार्थी पढ़ते हैं। इन पर सामान्य कामकाज में होनेवाले खर्च के लिए अब तक शाला प्रबंधन समिति जिम्मेदारी
निभाती रही है। उसे इसके लिए किसी अधिकारी से रुपए नहीं मांगना पड़ते हैं। इस समिति का एसबीआई में सरकारी खाता
होता है। समिति के सक्षम पदाधिकारियों के हस्ताक्षर से राशि निकालकर जरूरतें पूरी की जाती रही हैं। अब आरएसके ने अब
एसबीआई के राज्य मुख्यालय भोपाल को पत्र भेजकर एसएमसी खाते बंद करवाए दिए और उनकी सारी राशि ले ली है। ऐसे
में समिति को समझ नहीं आ रहा है कि वे जरूरी कामों के लिए किसके पास रुपए मांगने जाएं ? फिलहाल, भले ही स्कूलों में
पढ़ाई नहीं हो रही है लेकिन स्टाफ नियमित जा रहा है। इसके कारण बिजली बिल,
पानी, स्टेशनरी से लेकर अन्य खर्च होते हैं। कक्षाएं शुरू होने के बाद तो यह
खर्च कहीं अधिक ज्यादा होगा। स्कूलों के एसएमसी खातों में 50 हजार से 10
लाख रुपए तक जमा होते हैं। यदि औसत एक खाते में दो लाख रुपए भी माने तो
प्रदेश के एक लाख से अधिक स्कूलों के खातों में 20 अरब से अधिक रुपए जमा
थे। इन खातों को बंद कर इनकी राशि आरएसके ने अपने पास रख ली है। इंदौर
जिले में 1040 प्राइमरी, 538 मिडिल और 165 हायर सेकंडरी स्कूल हैं।
यानी, जिले के 1743 स्कूलों के खातों में करीब 35 करोड़ रुपए जमा थे। आज की तारीख में ये खाते शून्य हो गए हैं।